इस दुनिया में हम एक छोटी सी ऊर्जा के रूप में आते हैं। और अपना एक शरीर रूपी ढाचा पाने के लिए हम मां का गर्भाशय चुनते हैं। और यहां से ही दर्द की शुरुआत होती है। जब कोई बच्चा अपने मां के गर्भाशय से बाहर आकर पहली सास लेता है तो इसे जन्म कहते है।
नमस्कार दोस्तों मैं अरुण कुमार आज आपके साथ फिर से उपस्थित हूं। एक अपने ही जीवन की दर्द भारी कहानी लेकर जिसमें मैंने भी अपार दर्द का अनुभव किया। दोस्तों इस दुनिया में अरबों लोग रहते है। जिनमें से प्रत्येक व्यक्ति दर्द रूपी पीड़ा से बचने के लिए कठिन परिश्रम और मेहनत करता है। मैंने भी एक-बार अपने जीवन में बहुत दुख भरी पीड़ा यानि दर्द का अनुभव किया। तो आइए दोस्तों, आज हम समझने की कोशिश करते हैं, कि वास्तव में ये दर्द शब्द है, क्या? जिस शब्द मात्र से ही लोग डरते हैं। और इससे बचने के लिए अपार मेहनत करते हैं।
ये बात है १६ अगस्त २०२१ की, उस दिन मैं बहुत खुश था। क्योंकि उस दिन मैं अपनी बहन से मिलने जा रहा था। हलहीं मे मैंने अपनी १२वीं की परीक्षा पूरी की थी। और मुझे एक बाहर घूमने का अवसर भी मिला था। इसलिए मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था। सब - कुछ मेरे अनुसार हो रहा है। लेकिन कहते हैं। कि एक कदम के बाद क्या हो जाए किसको क्या पता। आज भी मेरे साथ सबकुछ नॉर्मल था। रोजाना की तरह ही मेरे दिन की शुरुआत बहुत अच्छे से होती है। इस समय मैं एक कुर्सी पर बैठा हुआ था। और प्राकृतिक हवाओं में खोया हुआ था। अचानक मेरी मां मेरे पास आती है, और बोलती है बेटा वो तुम्हारी भाभी हैं ना, जो चौरा में रहती हैं। आज वो भी आपके साथ आपकी बहन के यहां जाना चाहती हैं। मैंने जब ये सुना तो मुझे कुछ अजीब सा लगा। लेकिन फिर भी मैने बिना मन के अपनी मां से बोल दिया कि ठीक है। कि अगर आप बोल रहे हैं तो मैं उनको भी अपने साथ ले जाऊंगा। जिनको मै भाभी बोल रहा हूं असल में वो मेरे मामा के लडके की पत्नी थीं। और मेरे अंदाज के हिसाब से लगभग मेरे से २५ किलो मीटर दूर रहती थी अब इतना सफर तह करने में मेरे हिसाब से एक घण्टे का समय लगना तो अनिवार्य था। तो फिर मैं भी कुर्सी में बैठे - बैठे अपनी भाभी का इंतजार करने लगा और अपनी दीदी के घर पहुंचने के बाद मै क्या करूंगा उन विचारों में खो गया। अब सायद मुझे कुर्सी पर बैठे - बैठे एक घंटा हो चुका था। इसके बाद मेरे पास अचानक से एक फोन आता है।
मैंने सोचा कि ये मेरी बहन का फोन होगा। पर नहीं, ये मेरे भाई का फोन था। जो कि कोचिंग के लिए सिकंदरा गया हुआ था। जब मैंने फोन पिक अप किया । तो मेरा भाई मुझसे बोलता है। की भाभी घर पर नहीं आने वाली उनको आपको सिकंदरा से पिक अप करना होगा। क्योंकि उनको सिकंदरा से कुछ कपडे खरीदने है। ये सुनकर मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं और मैने कुछ ऊची आवाज में अपने भाई से कहा, कि आप भाभी से बोल दो की मैं उन्हें पिक अप करने सिकंदरा नहीं आ रहा। सायाद मेरी भाभी के पास मेरा मोबाइल नंबर नहीं था। इसलिए भाभी ने मेरे भाई के पास फोन किया था। कुछ समय बाद मेरे छोटे भाई सुमित का दोबार फोन आता है। जब मैंने फोन को पिक अप किया तो मेरा भाई बोलता है। की भाभी आपकी बात से सहमत नहीं हैं और वो आपको सिकंदरा आने के लिए बोल रही है। इसके बाद मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। और थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था। पर मै कर भी क्या सकता था। एक तरफ मेरी मां मुझे बोल रही थी कि चले जाओ और दूसरी तरफ मेरी भाभी मुझे बार - बार बुला रही थी। मानो, मैं एकदम सुन्न सा हो गया था मुझे ये पता नहीं चल रहा था कि अब मैं क्या करू। मेरा मन सिकंदरा जाने को बिल्कुल नहीं था। मुझे जाने क्यों ऐसा लग रहा था, कि जैसे मुझे कोई खीच रहा हो सिकंदरा की तरफ लेकिन जैसे- तैसे ना चाहिते हुए भी मै तैयार हो गया सिकंदरा जाने के लिए।
आज मेरे घर की स्थिति ऐसी थी कि मेरे पास सिकंदरा जाने के लिए कोई यातायात संसाधन भी नहीं था। जब कोई अतिथि बाहर से आता या मेरे घर से कोई भी बाहर जाता तो हमें ये हजारों बार सोचना पड़ता था। कि इन्हें अब हम इनके निर्दिष्ट स्थान तक कैसे भेजें। यदि कोई यातायात संसाधन नहीं मिलता तो हमें ये यात्रा हमें अपनी पुरानी साईकिल से करनी पड़ती थी। अब मैं पूरी तरह से तैयार हो चुका था। मेरी मां मुझे कुछ पैसे देती है। और बोलती है आराम से जाना मैंने कहा, ठीक है मां। मैं जैसे ही अपने घर के बाहर निकला तो मैंने देखा, एक लड़का जो कि मेरे पड़ोस में ही रहता है। जिसका नाम जानू है। अपनी बाइक लिए कहीं पर जा रहा है। अब मेरी यात्रा में थोनी सी सरलता हो इसलिए मैंने भी पूछ लिया कहा जा रहे हो भाई, मैंने थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला। उसने कहा सिकंदरा, तभी अचानक से जानू की मां घर से बाहर आ जाती है। और बोलती हैं, आप कहा जा रहे हो मैंने कहा, कुछ काम से अपनी बहन के घर जा रहा हूं। तभी जानू की मां बोलती है, आप भी बाइक पर चले जाओ जानू आपको सिकंदरा पर ड्रॉप कर देगा। मुझे भी थोड़ा अच्छा लगा क्योंकि अब सायद मुझे अपनी यात्रा करने में थोड़ी सरलता मिलने वाली थी। पर मुझे क्या पता कि मैं उस जगह पर जा रहा हूं। जहां पर मेरे जीवन में एक धब्बा लगने वाला जो पूरी जिंदगी भर मेरे साथ रहेगा और जिसमें मै अपार दर्द का अनुभव करूंगा। तभी अचानक जानू बोलता है थोड़ा रुको, मुझे थोड़ा अपने साथ समान लेना है और एक बोरी में कुछ राशन लेकर बाहर आता है। सायद उसे कुछ पैसों की जरूरत थी। इसलिए वो अपने साथ कुछ राशन लेकर बाजार जा रहा था ताकि उससे कुछ पैसे अर्जित कर सके। तभी जानू मेरे पास आता है और मुझे राशन कि बोरी देते हुए बोलता है बैठो, मैंने राशन से भरी बोरी को लिया और हम दोनों के बीच में बोरी को रखकर बैठ गया। रास्ते भर हम दोनों अपने घर की स्थिति के बारे में बाते करते रहे। मैं बाइक पर सवार था और जानू बाइक चला रहा था। क्योंकि मुझे तो बाइक को कैसे ड्राइव करना है ये आता ही नहीं था। हमरी बाइक की स्पीड ३० से ४० के बीच में थी। तभी जानू राशन की दुकान पर बाइक को रोकता है। जो कि सिकंदरा से थोड़े पहले ही थी। और वहां पर जानू अपने राशन को बेचता है। जानू को राशन के बदले में २२४ रुपए मिलते हैं। इसके बाद हम दोनों दोबारा से बाइक पर सवार होते हैं। अब मुझे थोड़ा सा अजीब सा लगने लगा था। मानो मुझे कोई बताने की कोशिश कर रहा था कि आगे मत जाओ तुम्हारे साथ कुछ अच्छा नहीं होने वाला है। मुझे थोड़ा - थोड़ा सा सक हो रहा था कि मेरे साथ कुछ ग़लत होने वाला है। लेकिन मैंने इसे नजर अंदाज कर दिया। इस समय हम दोनों के साथ सब कुछ अच्छा था। लेकिन मैं देखता हूं कि जानू अचानक अपनी बाइक की थोड़ी सी स्पीड को बढ़ाता है। और ट्रैक्टर को ओवरटेक करने की कोशिश करता है। और सामने से आ रहे टेम्पु से हमारा ऐक्सिडेंट हो जाता है।
ऐक्सिडेंट होते वक्त हमरी बाइक टेम्पु के साइड से टकराती है। और हमारी बाइक गिर जाती है। मेरा दहिना पैर पहले टेम्पु से टकराता है और उसके बाद मै रोड पर थोड़ा फिसलते हुए गिरता हूं। इसके बाद मै उठता हूं और थोड़ा डरते हुए अपने पूरे शरीर को देखने लगता हूं। कि मेरे कहां - कहां चोट आयी, सबसे पहले मै अपने माथे को हाथ लगाकर देखता हूं। जहां पर थोड़ी सी चोट थी। जो सायद फिसलते समय चोट लग गई थी। इसके बाद मेरी नजर मेरे पैंट की तरफ जाती है मै देखता हूं कि मेरा पैंट घुटने में थोड़ा सा फटा हुआ था। जब मैंने अपने पैंट के फटे हुए हिस्से से अपने पैर को देखा तो मेरे होश उड़ गए। मेरी दिल की धड़कन और तेज हो गई मुझे लगा कि मेरे साथ ये क्या हो गया। मेरा घुटना पूरी तरह से फट चुका था। उसमे मुझे अपनी सफेद हड्डी दिख रही थी जो बाहर की तरफ निकल आयी थी। मैंने अपने आप को संभालने की कोशिश की और हड्डी को अंदर की तरफ दबा दिया। जिससे हड्डी से चूं कि आवाज आई। इस समय मेरा पूरा शरीर सुन्न था इसलिए सायद मुझे दर्द का अनुभव नहीं हुआ। ये सारा काम मैंने रोड पर बैठे - बैठे किया। उस समय मुझे अपने आप को देखने के आलावा और कुछ, दिख ही नहीं रहा था। मानो दुनिया की सभी चीजी मेरे लिए गायब हो गई हो। उस वक्त मै अपने आस पास की सभी चीजो को भूल चुका था। मुझे केवल एक ही चीज याद थी और वो थी हॉस्पिटल। मुझे लग रहा था कि जल्द से जल्द मै हॉस्पिटल में पहुंचूं और मेरा इलाज शुरू हो सके। तभी वहां पर दो - तीन लोग आ जाते है। और मुझे पकड़ कर चलने के लिए बोलते हैं। लेकिन मैंने उन्हें बोला की मै अब इस लायक नहीं हूं की चल सकु लेकिन फिर भी उन्होंने मेरे बात नहीं मानी और मुझसे जबरदस्ती चलवाने की कोशिश की और मुझे रोड की एक तरफ धूप में ही लिटा दिया। इस समय मैं पूरी तरह होश में ही था। और अब लगभग मेरे ऐक्सिडेंट के हुए ५ मिनट हो चुके थे। इसके बाद मेरे पैर में बहुत ज्यादा दर्द होने लगा। दर्द इतना ज्यादा होने लगा कि मेरे मुंह से आह! आह! आह! की आवाज निकलने लगी। इतना भयानक दर्द मैंने अपनी पूरी जिंदगी में कभी अनुभव नहीं किया था। मेरे पैर में इतना दर्द हो रहा था कि मैं अपने पैर को हिला भी नहीं पा रहा था। मुझे केवल एक ही नाम याद आ रहा था और वो था हॉस्पिटल।
अब भी मै पूरी तरह होश में था। और थोड़ी ही देर में मैंने देखा कि वहां पर लोगो की भीड़ लग चुकी थी । और टेंपू वाला भाग चुका था। और मैंने ये भी देखा की वहां पर कुछ लोग मेरा वीडियो भी बना रहे थे। मैंने जानू से कहा कि आप मेरे घर पर कॉल कर दे। लेकिन उसने नहीं किया। वहां पर खड़े लोग मुझे इस तरह भीड़ लगाए देख रहे थे कि जैसे कोई मदारी अपना खेल दिखा रहा हो। वहां पर जो भी आता मुझसे वो एक ही सवाल पूछता कि आप कहां पर रहते हो और आपके पिता जी का क्या नाम है। मेरे पैर का दर्द बड़ता जा रहा था। इसलिए मैं हर दो मिनट बाद वहां पर खड़े लोगो से कहता कोई तो मुझे हॉस्पिटल ले चलो कोई तो मेरी मदत करो लेकिन कोई भी मेरी बात नहीं सुनता। लगभग धूप में लेटे - लेटे अब मुझे २० मिनट हो चुके थे। लेकिन किसी ने भी मेरी हेल्प नहीं की। तभी अचानक से वहां पर मेरा एक मित्र आ जाता है। जिसका नाम सुमित था। हालाकि हम दोनों साथ में कभी नहीं पढ़े थे। मैंने उसका एक बार पुराना मोबाइल खरीदा था जिस कारण हम एक दूसरे को जानने लगे थे। हम दोनों के बीच कोई खास मेल मिलाओ नहीं था। लेकिन फिर भी हम एक दूसरे को मित्र मानते थे। इसके बाद मेरे मित्र और कुछ लोगो ने मुझे धूप से उठाकर छाया में लिटाया। मैंने देखा कि मेरे पैर से तेजी से खून निकल रहा है। और बहुत सारा खून बाहर भी निकाल चुका था। इतना सब देखने के बाद भी वहां पर खड़े सैकड़ों लोगों में से कोई भी मेरी हेल्प करने के लिए तैयार नहीं था। अब मुझे वहां पर लेटे - लेटे लगभग ३० मिनट हो चुके थे। और एक - एक सेकेण्ड मेरे लिए एक महीने के बराबर लग रहा था। अभी भी मेरे मुंह से आह! आह! की आवाज निकालना बन्द नहीं हुई थी। सायद ये आवाज मेरे दर्द में आराम दायक साबित हो रही थी। इसलिए मै चाह कर भी इस आवाज के निकलने पर अपनी रोक नहीं लगा पा रहा था। मुझे बहुत ज्यादा कष्ट हो रहा था जिससे मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मै क्या करू। मुझे तो एक ही नाम याद आ रहा था और वो था हॉस्पिटल।
जब मैंने देखा कि वहां पर खड़े लोगो में से कोई भी व्यक्ति मेरी हेल्प करने के लिए तैयार नहीं हैं। तब मुझे लगने लगा था कि मेरी हेल्प कोई भी व्यक्ति नहीं करेगा। मेरे पैर की तकलीफ़ भी बढ़ती जा रही थी। और मुझे लगने लगा था कि मुझे अपनी हेल्प स्वयं ही करनी पड़ेगी। मेरा मोबाइल जो कि जानू लिए था। मैंने सबसे पहले उससे अपना फोन मांगा। इसके बाद मैंने अपने भाई को call लगा दी। मैंने अपने भाई से बिना घबराए सीधे ही बोल दिया कि मेरा ऐक्सिडेंट हो गया है। और मेरा पैर टूट गया है मै बिरहाना में लेता हूं आप आ जाओ। इसके बाद मैंने एम्बुलेंस का नंबर लगा दिया। लेकिन एम्बुलेंस मुझे लेने नहीं आयी। इसके १० मिनट बाद वहां पर पुलिस आ जाती है। और मुझसे मेरा पता पूछती है। पुलिस एक टेम्पु को रुकवाती है। और जानू से बोलती है कि इसे सरकारी अस्पताल लेकर जाओ। तभी जानू और मेरा दोस्त सुमित मुझे पकड़ कर टेम्पु में बिठाते है। रास्ते में हमें लगभग १० से १५ ब्रेकर मिलते हैं। जिसकी दौची मेरे पैर में बहुत चुभ रही थी और मेरे पैर के घावों को ताजा कर रही थी। जिस कारण खून तेजी से बहने लगा था और टेम्पु की सीट खून से भीग गई थी। लगभग १० मिनट की यात्रा के दौरान हम सरकारी अस्पताल पहुंचते हैं। वहां पर मेरा दोस्त सुमित और जानू हमें टेम्पु से उतार के स्ट्रेचर( मरीजों के लिए एक पहिये लगी चारपाई) पर लिटाते हैं। और अस्पताल के गेट के थोड़े ही अंदर मुझे ले जाकर मेरे पैर में दूर से ही बिना टच किए स्प्रिट डाल के पट्टी कर दी जाती है। उन्होंने मेरे पैर में टांके नहीं लगाए बल्कि ऐसे ही पट्टी कर दी। और मेरे हाथ में वीको लगाकर बोतल लगा दी। इसके बाद मुझे माती के लिए रेफर कर दिया। सरकारी अस्पताल लगभग मेरे घर से 9 किलोमीटर दूर था। और मुझे घर पर call किए सायद 25 मिनट हो चुके थे। जिस कारण मेरी मां, जानू के पिता जी, और मोहल्ले के एक लड़का रवी आ गया था। इसके बाद मुझे दोबारा से सरकारी एम्बुलेंस में नीचे वाले स्ट्रेचर में लिटाया गया। पट्टी होने के बाद भी मेरे पैर से बराबर खून निकल रहा था। जिसको देख मेरी मां घबरा रही थी। उनकी हालत क्या थी ये मै उनके चेहरे पर आसानी से देख पा रहा था। खून को देखते हुए मेरी मां सीट से नीचे उतर जाती हैं। और मेरे पैर को पकड़ लेती हैं ताकि पैर में दौची के लगने पर पैर हिले नहीं। मां ने मेरे पैर के किनारे एक तौलिया भी लगाई जो पीले कलर की थी। एम्बुलेंस की दौची के कारण मेरे पैर का जखम बार - बार ताजा हो रहा था। जिसके कारण मेरे पैर से खून का बहना बंद नहीं हो रहा था। लगभग १ घण्टे की यात्रा के दौरान हम माती के सरकारी अस्पताल में पहुंचते हैं। वहां पर भी हमें स्ट्रेचर में लिटा कर अस्पताल के अंदर ले जाया गया। लेकिन वहां भी मुझे भर्ती करने के लिए मना कर दिया गया। केवल मेरे हाथ में लगी बोतल जो अब खत्म हो चुकी थी उसे बदल दिया गया था। और मुझे हैलट के लिए रेफर कर दिया गया।
इस अस्पताल में भी मैंने दर्द से भरे ३० मिनट गुजारे। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था। केवल स्ट्रेचर में लेटे - लेटे सारा नजारा देख रहा था। कुछ देर बाद रवी भाई आते हैं। और मुझे एक प्राइवेट एम्बुलेंस में लिटाते हैं। जो कि सरकारी एम्बुलेंस से कुछ छोटी थी। मेरी मां, रवी भैया और जानू के पिता आपस में बातचीत कर रहे थे। कि आखिरकार किस अस्पताल में हम अपने मरीज को लेकर जाए। मेरा ऐक्सिडेंट के हुए दो घण्टे से भी ज्यादा समय हो गया था। जिसके कारण मेरे पैर से काफी ज्यदा खून निकल चुका था। और वो जो तौलिया मेरी मां ने मेरे पैर में लगाई थी वो अब पीले कलर से बदल कर लाल हो चुकी थी। ये देखते हुए मेरी मां बहुत ज्यादा घबरा रही थी। मेरी मां का घबराहट पन मै उनके चेहरे पर साफ - साफ देख पा रहा था। वो भी चाहिते हुए भी कुछ नहीं कर पा रही थी इसलिए मुझे इस हालत में देखने में मजबूर थी। मेरी मां रवी भैया से बोल रही थी कि जल्द ही उन्हें किसी प्राइवेट अस्पताल में चले। हमें हेलट पहुंचते पहुंचते बहुत देर हो जायेगी। इसके बाद हमारी तीसरी बार फिर से यात्रा शुरू होती है। और इस बार हम लगभग एक घंटा बीस मिनट का अपना दुःख भरा समय गुजरते हुए डी. एस. मेमोरियल हॉस्पिटल रायपुर में पहुंचते हैं। वहां पर हमें दोबार से स्ट्रेचर में लिटाया गया। इसके बाद हमें एक्सरे के लिए एक्सरे कक्ष में ले जाया गया। एक्सरे कक्ष में पड़ा हुआ बेड कुछ उचाई पर था। जिस कारण हमें दो लोगो ने पकड़ कर एक्सरे बेड पर लिटाया। इसके बाद हमारा एक्सरे होता है। और मुझे एमरजेंसी रूम में ले जाया जाता है। वहां पर मुझे दो - तीन इंजेक्शन दिए जाते है। और इसके बाद मेरा ट्रिटमेंट शुरू होता है। दोस्तों ये मेरे जीवन का वो पल था जिसे सायद मै कभी ना भूल पाऊ। इस पल में मैंने इतना ज्यादा दर्द का अनुभव किया कि मुझे बेहोश होने के लिए केवल एक पल ही बाकी था। डॉक्टर लोग मेरा ट्रिटमेंट इस तरह से कर रहे थे मानो मै इंसान नहीं बल्कि एक मशीन हूं। और मै ये सब अपनी आंखो से देख भी पा रहा था। लेकिन मैं चाह कर भी उन डाक्टरों से कुछ नहीं कह सकता था। ऊपर एक इमेज के माध्यम से मैंने अपने घाव को दिखाया है। पट्टी खोलने के बाद एक डॉक्टर अपनी चार उगलियां मेरे उसी घाव में डाल देता है। और मेरे पैर की घुटने की बिलिया(पटेला) को ऊपर खीचकर एक तार से सुई धागे की तरह सीने लगता है। इसके बाद मेरे पैर में टांके लगा दिए जाते है। डॉक्टर लोगों ने मेरे पैर को सुन नहीं किया था। इसलिए ये पल मेरे लिए यादगार सा बन गया था। ट्रिटमेंट पूरा होने के बाद मैंने देखा कि जो डॉक्टर मेरा ट्रीटमेंट कर रहा था। उसके दोनों हाथ खून से लिपटे हुए थे। और जिस बेड पैर मै लेटा था। उसकी रबर सीट खून से भीग गई थी। इस समय मेरी हालत बहुत नाज़ुक थी। मेरे शरीर में बिल्कुल भी इनर्जी नहीं बची थी। ट्रीटमेंट के बाद मेरा पैर और ज्यादा दर्द करने लगा था। और पता नहीं क्यों मुझे बहुत तेज प्यास लग रही थी। इसके बाद मुझे एक बेड पर लिटा दिया जाता है। इसके बाद मुझे एक पैनकिलर इंजेक्शन दिया जाता है। और मुझे थोड़ा सा आराम मिल जाता है जिससे मै सो जाता हूं।
शाम को जब मै दोबारा उठता हूं। तो देखता हूं मेरी छोटी बहन और मेरे गांव से कुछ लोग आ गए थे। अब मुझे थोड़ा सा आराम मिल गया था। इसलिए मुझे अब थोड़ा सा अच्छा लग रहा था। मानो मेरे साथ कोई दुर्घटना हुई ही ना हो। लेकिन जब मुझे अपने पैर की चोट याद आती तो मेरा दुख पहले की तरह उतना ही बढ़ जाता। अभी शाम के आठ बजे थे। इसलिए घर से कोई भी व्यक्ति भोजन भी नहीं ला सकता था। इसलिए मैंने होटल का खाना खाया। जो स्वाद में मुझे अच्छा भी लगा। अब रात के नौ बज रहे थे। इसके बाद भी मेरे जीजा जी, जानू के पिता जी और सीतू भैया घर जाने के लिए तैयार हो गए। सायद इनको घर पर कुछ जरूरी काम था। इसके बाद मै मेरी छोटी दीदी रोली, मेरी मां, मेरे बड़े जीजा जी, रवी भैया और मेरी बड़ी दीदी आपस में लगभग दो घण्टे बातचीत करते हुए हसी मजाक करते हैं। इसके बाद मै दोबारा से सो जाता हूं।
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